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चांदनी रात में
नदी किनारे बैठे
मैं और तुम
निशब्द
लिए हाथों में हाथ
एकटक देखते हुए
लहरों पर
उतर आये
सितारों को
जिनकी चमक
है नज़रों में
हमारी ...
बहता है
मध्य हमारे
बस
मुखरित मौन
जिसकी संगति
दे रहा है संगीत
नदी की
कल कल का ...
यही लम्हे
सरमाया है
ज़िंदगी का मेरी
जब मैं बस 'मैं 'हूँ
तुम बस 'तुम ' हो
न मैं 'मैं हूँ
न तुम 'तुम' हो
दुनिया से
पृथक
दो अस्तित्व
हो उठे हैं
एकाकार
उस विराट में
खो कर
स्वयं को
laukik prem ko alaukik se jodti hui premras bhari sunder rachna..
जवाब देंहटाएंwaah... nihshabd
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति भावो की।
जवाब देंहटाएंBahut Khoob..Bahut aacha likha hai aapne.....2 lines....
जवाब देंहटाएंEk Ehsaas hai ki ab bus,
'Main' hi 'Tum' ho aur 'Tum' hi 'Main' hun..