रविवार, 15 अगस्त 2010

मोहब्बत और आजादी ...

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डरता है वो
कि
हो ना जाए
वो
किसी की
मोहब्बत में
गिरफ्तार ....
हैरान होता है
कि
कैसे कर पाती हूँ
मैं
किसी से
इतना प्यार

नादाँ है
नहीं जानता
जिंदगी के
इस छोटे से
राज़ को ,
मोहब्बत
नहीं करती
गिरफ्तार
कभी किसी
परवाज़ को

रहती है
जब तक
आज़ादी
और
मोहब्बत
जुदा ,
नहीं होता
महबूब
किसी के लिए
तब तक
खुदा ...

लगायी
नहीं कोई
पाबन्दी
खुदा ने खुद
अपनी
परस्तिश में,
उलझता है
इंसान
फिर क्यूँ
इश्क की
बेजा
आजमाईश में...

जब तक होंगे
आज़ादी
और
मोहब्बत
दो अलहदा
एहसास ,
घुटती रहेगी
यूँही
जिंदगी की
हर
आती -जाती
सांस...

डूब जाना
मोहब्बत में
नहीं है
गिरफ्तारी
इश्क की ,
है ये आज़ादी
फ़ैल जाती जो
ज़र्रे ज़र्रे में
जैसे महक
मुश्क की .....

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