सोमवार, 16 अगस्त 2010

सन्नाटे.....(आशु रचना )...


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समेट कर
एहसास सारे
दिल से
अपने,
भर लिए थे
मैंने
निगाहों में
अपनी ...
छलकती नज़रों की
ज़ुबान पढ़ने में
थे शायद
नाकाबिल
तुम,
कर एहसास
इसका
दिए थे लफ्ज़
उन एहसासों को
गुज़रे थे
जो लबों से
मेरे ....
गूँज रहे हैं
वो लफ्ज़
मेरे दिल के
सन्नाटे में
शोर
बन कर,
जो
लौट आये हैं
टकरा कर
तुम्हारे
कानो के
बंद
दरवाजों से .....
चलो !!
कम से कम
दिल के
सन्नाटे में
कोई
चहल -पहल
तो है ......




5 टिप्‍पणियां:

  1. स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!

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  2. ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

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  3. कम से कम
    दिल के
    सन्नाटे में
    कोई
    चहल -पहल
    तो है ......

    ... बेहद प्रभावशाली

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  4. एक प्रभावशाली कविता है|धन्यवाद्|

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  5. स्पंदन सा लिए है यह कवि सन्देश !

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