शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

राज़ सृष्टि का....

हुआ सार्थक जीवन मेरा
मिला साथ जो तेरा
खुशियों से रीते हाथो को
मिला हाथ जो तेरा

महसूस किया तेरे होने को
हुए जो कम्पन मन में
सुना है मैंने उन बातों को
आवाज़ न होती जिनमें

साथ मिले पल भर का या फिर
जीवन बीते सारा
भरा प्रेम से मन गागर को
अमृत बन के तारा

अलग अलग दिखते हैं जग को
भेद है ये दृष्टि का
जुडी है रूहें किस बंधन से

राज़ है ये सृष्टि का

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