बुधवार, 30 जून 2010

आब-ए-वफ़ा...

पिघलता है
जब
तुमसा
हिम खंड,
मोहब्बत की
तपिश से

उफन उठता है
एहसासों से
भरा,
मेरे दिल का
दरिया

हो उठता है
हर ज़र्रा,
हरा भरा,
और पुरनूर

जब होता है
वाबस्ता,
उस
आब-ए- वफ़ा
से .....

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