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खबर नहीं कि खुदी क्या है बेखुदी क्या है
गुज़रती जाती है बस यूँही जिंदगी क्या है
चले हैं साथ तेरे छोड़ के ये रस्मों रिवाज
तेरे खयाल में जाना कि बंदगी क्या है
वो रिंद क्या जो बहक जाए चंद घूंटों में
खुदी संभाल न पाए वो मयकशी क्या है
हर एक ज़र्रे में पाया है नगमगी का ख़लूस
जो दे सुनाई न हर सिम्त मौसिकी क्या है
खिल उठती है मेरे लब पर हंसी अकेले में
छुए बिना भी तुझे होती गुदगुदी क्या है
नहीं है खौफ ,तेरे दिल का नूर हूँ जबसे
टिकी सहर-ए-मोहब्बत में तीरगी क्या है
मायने-
बंदगी- पूजा
रिंद- शराब पीने वाला
नगमगी -संगीत
ज़र्रे-कण कण
ख़लूस -निष्ठा
सिम्त-दिशा
मौसिकी-संगीत
खौफ-डर
सहर-ए -मोहब्बत- मोहब्बत की सुबह
तीरगी-अन्धकार
"बेहतरीन ..क्या शब्द चुने हैं..."
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंवाह
बहुत खूबसूरत गज़ल....अभी कुछ ऐसी ही कहीं और पढ़ी...
जवाब देंहटाएंhttp://merejajbaat.blogspot.com/2010/07/blog-post_02.html
Amitraghat जी बहुत बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंM VERMA जी धन्यवाद
हाँ दीदी ...
यह के.के. साहब की गज़ल है..सीरियस राईटर्स पर तरही मुशायरे में मिसरा मिला है
"खबर नहीं कि खुदी क्या है बेखुदी क्या है"
उसको इस्तेमाल करके अलग अलग लोग अपनी अपनी गज़ल लिखेंगे ... आज मैंने सबसे पहले लिखी और दुसरे नम्बर पर के.के. साहब ने ...इसलिए आपको ऐसा लगा कि एक सी ही हैं.. अभी और भी बहुत सी आएँगी पूरे महीने में... इससे पहले वाली "क्या समझे" भी तरही गज़ल ही थी :)
आपको पसंद आई अच्छा लगा :)
nicely composed
जवाब देंहटाएंaaj chunne wala din nahi hai..har shabd behad khubsurat :)
जवाब देंहटाएंवाह वाह! बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गजल बन पड़ी है।
जवाब देंहटाएंमाधव जी, अविनाश,समीर जी और राजकुमार जी आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया पोस्ट तक आने और सरहाने का ...
जवाब देंहटाएंआपकी गजल में एक अजब सी ताजगी है।
जवाब देंहटाएं................
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