शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

बेखुदी क्या है

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खबर नहीं कि खुदी क्या है बेखुदी क्या है
गुज़रती जाती है बस यूँही जिंदगी क्या है

चले हैं साथ तेरे छोड़ के ये रस्मों रिवाज
तेरे खयाल में जाना कि बंदगी क्या है

वो रिंद क्या जो बहक जाए चंद घूंटों में
खुदी संभाल न पाए वो मयकशी  क्या है

हर एक ज़र्रे में पाया है नगमगी का ख़लूस
जो दे सुनाई न हर सिम्त मौसिकी क्या है

खिल उठती है मेरे लब पर हंसी अकेले में
छुए बिना भी तुझे  होती गुदगुदी क्या है

नहीं है खौफ ,तेरे दिल का नूर हूँ जबसे
टिकी सहर-ए-मोहब्बत में तीरगी क्या है

मायने-

बंदगी- पूजा
रिंद- शराब पीने वाला
नगमगी -संगीत
ज़र्रे-कण कण
ख़लूस -निष्ठा
सिम्त-दिशा
मौसिकी-संगीत
खौफ-डर
सहर-ए -मोहब्बत- मोहब्बत की सुबह
तीरगी-अन्धकार

10 टिप्‍पणियां:

  1. "बेहतरीन ..क्या शब्द चुने हैं..."

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  2. बहुत खूबसूरत गज़ल....अभी कुछ ऐसी ही कहीं और पढ़ी...

    http://merejajbaat.blogspot.com/2010/07/blog-post_02.html

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  3. Amitraghat जी बहुत बहुत शुक्रिया

    M VERMA जी धन्यवाद

    हाँ दीदी ...

    यह के.के. साहब की गज़ल है..सीरियस राईटर्स पर तरही मुशायरे में मिसरा मिला है
    "खबर नहीं कि खुदी क्या है बेखुदी क्या है"

    उसको इस्तेमाल करके अलग अलग लोग अपनी अपनी गज़ल लिखेंगे ... आज मैंने सबसे पहले लिखी और दुसरे नम्बर पर के.के. साहब ने ...इसलिए आपको ऐसा लगा कि एक सी ही हैं.. अभी और भी बहुत सी आएँगी पूरे महीने में... इससे पहले वाली "क्या समझे" भी तरही गज़ल ही थी :)

    आपको पसंद आई अच्छा लगा :)

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  4. माधव जी, अविनाश,समीर जी और राजकुमार जी आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया पोस्ट तक आने और सरहाने का ...

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