शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2009

प्रीत---(आशु रचना )


सुना था मैंने कहे है ज्ञानी
"भय बिनु प्रीत न होए"
प्रीत भई जब उस मौला से
भय काहे को होए ...

भय काहे को होए रे मौला
मन में लगन लगी जब
हुई दीवानी तन मन बिसरा
डर इस जग से क्या अब..

डर इस जग से क्या अब मौला
प्रेम अगन में तप कर
कुंदन हो गयी नश्वर काया
राम नाम जप जप कर

राम नाम जप जप कर मौला
उर आनंद समाया
प्रेम भावः के सम्मुख भय का
भावः न कोई बच पाया

सोमवार, 26 अक्टूबर 2009

मासूम

कितने मासूम से ख्याल
आते हैं अक्सर
ज़हन की दीवारों पर
बिखर जाते हैं
बन के रंग
आंखों में
उतर आता है
उन ख्यालों को
जीने का सुकून ..
खिलखिलाहटें ,
मुस्कुराहटें ,
मन से गुज़र कर
आती हैं होठों पर
और कर देती है
वातावरण भी आनंदित
कैसे हो सकते हैं
फिर ऐसे ख्याल विकृत
वो तो हैं बस
निश्छल मासूम
बच्चों के मन जैसे
दिला जाते हैं याद
मुझे भी बचपन
खेले जिसमें खेल
जिस पल खेले
वो पल सच था
नहीं था उसका मेल
जी लें अब भी
गर हम बचपन
सत्य मान इस पल को
बिसरे कटुता
निर्मल हो मन
याद रखे न कल को

शनिवार, 24 अक्टूबर 2009

दीपक

जला था दीपक लगातार यूँ ,हो गया महत्वहीन
अपेक्षित था जो प्रेम स्वजन से, ना पाया वह दीन

फिर भी घर को रोशन करता धरम निभाता अपना
क्षीण थी बाती ,तेल शून्य था , ज्योति बन गयी सपना

तभी कोई अनजान मुसाफिर , छू गया सत्व दीपक का
भभक उठी वह मरणासन्न लौ,भर गया तेल जीवन का

घर व मन का कोना कोना ,ज्योति से तब हुआ प्रकाशित
दीपक में किसकी बाती है , तेल है किसका, सब अपरिभाषित

निमित्त बना कोई ज्योति का,हुआ प्रसारित बस उजियारा
यही तत्व है, दूर करो सब, मेरे तेरे का अँधियारा

बुधवार, 14 अक्टूबर 2009

कैसे करूँ

दिल के ज़ख्मों का नज़ारा कैसे करूँ
दर्द-ए-सागर से किनारा कैसे करूँ

बहता है सफीना मेरा,मौजों के इशारे पर
पतवार तेरे हाथों में,गवारा कैसे करूँ

नज़रों से बयां होती ,हर बात मेरे दिल की
देखे न तू मुझको,इशारा कैसे करूँ

हर  अश्क छुपाया है,नज़रों से तेरी जानम
सितम जज़्बात पे अपने,गवारा कैसे करूँ

कहने को बहुत कुछ है ,खामोश जुबां लेकिन
जज़्बों को मैं लफ्जों का,सहारा कैसे करूँ

गुज़रे हुए वो लम्हे हासिल थे जिंदगी का
खो कर उन्ही लम्हों को,गुज़ारा कैसे करूँ

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मंगलवार, 13 अक्टूबर 2009

Mukt

nahin hai
insaan Mukt
in swachhand pakshiyon,
gamakti bayaron,
barste badalon,
pighalte pahadon
ki tarah....

diya hai usne
swayam ko
pinjre jaisa samaj,
jo kabhi bada ,
kabhi chhota
to hota hai
par swachhand udan
milti nahin sehaj
pakshi ko

phadphada ke pankh,
takra ke deewaron se,
kar baithta hai
nireeh panchhi
ghayal khud ko
aur pinjra vijayonmat
bhav se apne
astitva par
garv karta jata hai..........

bhagya

बनते हैं
कारण हम
निज भाग्य को
पनपाने में ..
बोते हैं बीज
अदृश्य हाथों
स्वयं ही
अनजाने में....

समय ले कर
बीज फूटते
कभी
बबूल
तो कभी
आम हो के
कर के
विस्मृत
अपनी बुआई
हो जाते हम
विह्वल
बबूल को
दुर्भाग्य
कह के

गर करे
बुआई
हो
सजग और
चेतन
छांटे
खर- पतवार
अवांछित
अविराम
हो कर
वृक्ष
भाग्य का
फलेगा
मनवांछित
देने ठंडक
मन को
छायादार
हो कर

शनिवार, 10 अक्टूबर 2009

rasta

manzil ko pane ki lipsa mein
mat bhool tu manmohak rasta
har kshan ka degi anand tujhko
man ki sajagta aur grahyata

agyaat ki fikr mein kyun
karta upeksha is kshan ki
utsav anand hai har pal mein
pehchan, aankhein khol man ki

बुधवार, 7 अक्टूबर 2009

स्वपन

एहसास तेरे
होने का प्रखर
शब्द मौन थे
भावः मुखर

चेहरे पे गिरी
जुल्फों को हटा
अधरों से
अपने अधर सटा

भर दृढ बंधन
में बाँहों के
ले चले मुझे
तुम किन राहों पे


नैनो की भाषा
मादक अधीर थी
हृदय की गति
हो रही तीव्र थी


कम्पन से
रों रों गुंजारित
प्रतिध्वनि कहीं
होती उच्चारित

बिसर गया
अस्तित्व  भी निज का
भेद मिटा हर
कण से द्विज का  

फूल से हल्का
लगता था तन
उड़ा मेघ संग 
चंचन सा मन

मदमस्त पवन
का झोंका आया
चिडियों ने
चहचहा बतलाया

देख सुनहरी
भोर की बेला
स्मित अधरों
पर है खेला

खुली जो  पलकें
पता चला ये
स्वपन था गहरा
खूब भला ये

डूब प्रेम में
दिल खोता है
स्वपन भोर का
सच होता है.....

अंहकार

अंहकार मद चढ़ता जिसपर
दिखता उसे उजास न कोई
मैं ही मैं का बजता डंका
ध्वनि हृदय की उसमें खोयी

होते उत्पन्न कलुष विकार जब
रावण सम ज्ञानी मिट जाते
स्व-आदर के भ्रम में प्राणी
अहम् को अविरल पोषित पाते

ज्ञान भला है उस ज्ञानी का
झुकना करता जिसे न विचलित
सजग ,सहज और स्व-अनुभव ही
करता दिशा दिशा आलोकित........