मंगलवार, 13 अक्टूबर 2009

bhagya

बनते हैं
कारण हम
निज भाग्य को
पनपाने में ..
बोते हैं बीज
अदृश्य हाथों
स्वयं ही
अनजाने में....

समय ले कर
बीज फूटते
कभी
बबूल
तो कभी
आम हो के
कर के
विस्मृत
अपनी बुआई
हो जाते हम
विह्वल
बबूल को
दुर्भाग्य
कह के

गर करे
बुआई
हो
सजग और
चेतन
छांटे
खर- पतवार
अवांछित
अविराम
हो कर
वृक्ष
भाग्य का
फलेगा
मनवांछित
देने ठंडक
मन को
छायादार
हो कर

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