कितने मासूम से ख्याल
आते हैं अक्सर
ज़हन की दीवारों पर
बिखर जाते हैं
बन के रंग
आंखों में
उतर आता है
उन ख्यालों को
जीने का सुकून ..
खिलखिलाहटें ,
मुस्कुराहटें ,
मन से गुज़र कर
आती हैं होठों पर
और कर देती है
वातावरण भी आनंदित
कैसे हो सकते हैं
फिर ऐसे ख्याल विकृत
वो तो हैं बस
निश्छल मासूम
बच्चों के मन जैसे
दिला जाते हैं याद
मुझे भी बचपन
खेले जिसमें खेल
जिस पल खेले
वो पल सच था
नहीं था उसका मेल
जी लें अब भी
गर हम बचपन
सत्य मान इस पल को
बिसरे कटुता
निर्मल हो मन
याद रखे न कल को
sach mein kabhi-kabhi vo bachapan ki nischhalata vapas pane ko man karta hai.bahut umda.
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