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वहमों गुमाँ की हद से परे,तुझ पे यूँ एतबार
मिलने का न था वादा मगर, दिल को इंतज़ार...
तस्सवुर में तेरे गुजरी थी शब,लेते हुए करवट
बेकरार हिज्र में ज्यूँ तेरे वस्ल का करार ...
तू ही तो महकता है हर हर्फ़ से मेरे
तेरी ही तमाज़त से पिघले मेरे अशआर...
लब सी लिए हैं मैंने रवायत से ज़माने की
खामोशियाँ हैं अब मेरी उल्फत का इज़हार...
डूबे हैं इश्क़ में , फिक्र-ए-साहिल क्यों करना
मुबारिक है हमको तो मोहब्बत की मझधार ..
मीठी सी चुभन रूह में जो इश्क़ की हुई
दुनिया कह रही है कि गुल नहीं ,है तू इक ख़ार....
मायने:
वहमों गुमाँ-संशय/doubt
तसव्वुर-कल्पना/imagination
हिज्र-जुदाई/seperation
वस्ल-मिलन/union
हर्फ़-अक्षर/letter
तमाज़त-आँच/heat
अशआर-शेर का बहुवचन/couplets
रवायत-परम्परा/tradition
उल्फ़त-प्रेम/lovingness
ख़ार-काँटा/thorn
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 04 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ज़बरदस्त ग़ज़ल ।। हर शेर लाजवाब 👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल
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