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(होम मेकर्स के रोल को लेकर चर्चाएं होती है, यह रचना कुछ पहलुओं को शब्दों में पिरोने का प्रयास है...विषय इससे भी कहीं अधिक विस्तृत और गहन है)
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इतना आसान कहाँ था
गृहिणी हो जाना
ईंट गारे की दीवारों को
घर में बदलना
नए परिवेश में
स्वयं की पहचान बनाना
शब्दों से परे व्यवहार से
विश्वास जमाना
अपनी काबिलियत का
भरोसा दिलाना
आसान कहाँ था
एक अपरिचित का
हमसफ़र हो जाना...
पहली पीढ़ी के
जीवन मूल्यों को
सम्मान दिलाना
पुरानी नयी सोचों में
सामंजस्य बिठाना
चार पीढ़ियों का
एक छत तले होने का
सौभाग्य पाना
आसान कहाँ था
सबकी लाड़ली हो जाना.....
बच्चों के बचपन में
खुद जी जाना
डगमगाते क़दमों की
दृढ ज़मीन बन जाना
नन्हीं सी दृष्टि को
आकाश दिखाना
उड़ने में पंखों की
ताक़त बन जाना
आसान कहाँ था
नयी पौध के लिए
प्रेरक हो जाना...
बाहरी लोगों की बातों से
खा कर चोट
कभी खुद ही की
उलझनों का घोट
अवसाद कभी
तो कभी विफलता
भय भी कभी
गर न मिली सफलता
हर स्थिति में
पति व बच्चों का साथ निभाना
मन की सुनना और समझाना
आसान कहाँ था
मनोचिकित्सक हो जाना ...
सीमित चादर में
पैर फैलाना
अपनी शिक्षा
व्यर्थ न गंवाना
कर उपयोग ज्ञान का
निज कार्य की संतुष्टि पाना
परिणामस्वरूप घर में
योगदान अतिरिक्त आय का करना
लगा लगाम फिजूलखर्ची पे
बचत निवेश से
समृद्धि लाना
आसान कहाँ था
वित्त मंत्री का पात्र निभाना ....
बीच व्यस्त इन सबके भी
खुद को न बिसराना
गीत संगीत और
लिखना पढ़ना
शौक सभी पूरे कर पाना
परवाह औरों की
कर सकने ख़ातिर
पहले खुद की परवाह करना
स्वीकर तहे दिल से निज भूलें
क्षमा चाहना
क्षमा भी करना
आसान कहाँ था
'स्वयं हो जाना ....
सच कहती हूँ
आसान कहाँ था गृहिणी हो जाना
बहुत कठिन है 'होममेकर 'होना