मंगलवार, 15 अक्टूबर 2019

शरद पूर्णिमा......

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शरद की गुलाबी चादर में लिपटा
स्निग्ध धवल सुधाकर
लिए है मादकता
अपने मिलन के पलों की..

रुपहली चांदनी में
कलकल करती नदिया तीरे
दिखते दो बदन
पिघल रहे थे
चंद्र किरणों की तपिश से,
सरिता के शीतल नीर की छुअन
कर रही थी प्रज्ज्वलित
अगन हृदय में ,
प्रतिबिम्ब मयंक का
झिलमिलाते जल में
लग रहा था ज्यूँ
स्वयं निशापति
उतर आये हैं झूम कर
चूमने युगल पाँवों को..

छुए बिना देह
उतर गए थे
हम रूहों में एक दूजे की
गमक रहा है वजूद
तब से
रात की रानी की तरह,
दैदीप्यमान है आभामंडल अपना
समा जाने से हममें
शरद पूनो के चाँद का.....

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 16 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुंदर सरस अभिव्यक्ति।
    सुंदर बिंब संयोजन।

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