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इश्क़ में यूँ उतर जाना
बेवजह तो नहीं है,
इस दर्द से गुज़र जाना
बेवजह तो नहीं है...
मुलाक़ात हुई खुद से
हुए जब तुम मुख़ातिब
रूह का सुकून पाना
बेवजह तो नहीं है ....
चाहे तू भी मुझे ऐसे
ये अना है या मोहब्बत
तेरी यादों में पिघल जाना
बेवजह तो नहीं है .....
तेरी चोटों ने तराशा
मुझमें वजूद मेरा
ज़र्रा ज़र्रा यूँ बिखर जाना
बेवजह तो नहीं है .....
हो जाऊँ फ़ना मैं अब
रब की है ये चाहत
हर साँस उसका तराना
बेवजह तो नहीं है....
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 12 अगस्त 2019 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत उम्दा!!
जवाब देंहटाएंतेरी चोटों ने तराशा
जवाब देंहटाएंमुझमें वजूद मेरा
ज़र्रा ज़र्रा यूँ बिखर जाना
बेवजह तो नहीं है .... प्यार का पराकाष्ठा ..बहुत अच्छे भाव !
वाह!!बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण
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