मंगलवार, 18 सितंबर 2018

नैहर

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छूट जाता है
बचपन
उस आँगन के
छूटने  के साथ ही
जहाँ खेली थी
लाडली
गुड्डे  गुडिया ....

जीती है
यथार्थ
जिसमें
जीवन नहीं
खेल
महज़
गुड्डे गुडिया का ...

किन्तु
जाते ही
नैहर
मिलती है
छाँव जब
माँ के आँचल की
बन जाती है
फिर से
वही नन्ही बच्ची
होती है
खुश जो
नन्हीं नन्ही 
बातों पर .......

छूट जाता है
जब वो ही नैहर
होते ही
दिवंगत
माता -पिता के
होने लगता है
एक बेटी को
महसूस
कि जैसे
छीन ली हो
किसी ने
वो धरती
जहाँ थी
उसकी जड़ें
जहाँ बीता था
उसका अनमोल
बचपन .....

तपते सूरज से
किसी पल में
तरसती है
फिर लाडो
अपना कहे
जाने वाले
किसी सुखद
ठौर के लिए
जहाँ मिल सके
उसे
माँ के आँचल की सी
शीतल छाँव ....

और हो जाती है
तब वो
हमेशा के लिए
बड़ी ......

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