मंगलवार, 25 सितंबर 2018

क्या कहिये .....


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किया ज़िन्दगी में शामिल
हमपे ये इनायत क्या कहिये...
सरे बज़्म छेड़ती हैं
आँखों की शरारत क्या कहिये ...

नज़रों से समेटा मुझको
मूँद ली फिर पलकें
महबूब का मेरे, वल्लाह
अंदाज़े हिफाज़त क्या कहिये ....

ख़ामोशी ज्यूँ गा रही है
धड़कन में बसी ग़ज़लें
दरिया-ए - जज़्बात के
बहने की नफ़ासत क्या कहिये.....

रूहों का मिलन अपना
तोहफ़ा है इलाही का
तू मैं हूँ के मैं तू है
अपनी ये शबाहत क्या कहिये .....

रोशन है हर इक ज़र्रा
मशरिक़ से उठा सूरज
इक नूर बरसता है
इस दिन की वज़ाहत क्या कहिये.....

मायने -
शबाहत -similarities
वज़ाहत - भव्यता/सुंदरता

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