रविवार, 28 अक्टूबर 2012

पाने को मूल स्वरुप .....

करते जाते हैं
सतत जतन हम
करने को सिद्ध
स्वयं को,
लाया जाता है
परिवर्तन
निज व्यवहार में
अनुरूप
अन्यों की पसंद के

होता है घटित
रूपांतरण
अंतस में जब हमारे
दिखते हैं
उसके बिम्ब
स्वयं ही
हमारे कृत्यों में
बिना किसी उपक्रम के,

हो कर जागरूक
खुद पर ओढ़े हुए
आवरणों के प्रति ,
हो सकते हैं हम
मुक्त उनसे
पाने को
मूल स्वरुप
स्वयं का
है जो
सहज ,
सरल
और
करुणामय
सदृश
उस परम के ......



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