मंगलवार, 18 सितंबर 2012

राज़ है यही...(आशु रचना )

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घुलते हैं किनारे
संग संग
दरिया के बहाव के
बिना खोये
वजूद अपना ...

हो जाते हैं
कभी कहीं दृढ
देते हुए
एक स्पष्ट दृष्टि
नदी को
दिशा निर्धारण की...

करते हुए महसूस
वजूद किनारों का
बहे जाती है नदी
अपने सतत प्रवाह में
रखते हुए
सहज संतुलन
गति का अपनी ....

राज़ है यही
ठहराव और
बहाव के
करार का ..
सह-अस्तित्व के
स्वीकार का ...




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