गुरुवार, 31 मई 2012

जीना पल पल ....



पल से घड़ियाँ बनती हैं
घड़ियों से रचित दिवस रजनी,
युग हो कर बन जाती सदियाँ ,
पल ही तो है सब की जननी ....


हर पल को यदि माने अंतिम
तब अर्थ उसे हम दे पाते
सजग जियें हर पल को हम
हम सच में हर पल जी पाते..


मिथ्या परिभाषाएं गढ़ कर हम
भ्रमित किया करते खुद को ,
अपने क्षुद्र हित साधन के हेतु
छवि में क्यों लायें हम बुद्ध को...


'पल में जीना' नहीं समझ सके
अनर्थ अर्थ का कर डाला
भर डाला विकृत सोचों से
स्वार्थपरता का रीता प्याला..


जन्म उद्देश्य विस्मृत कर
हर पल व्यर्थ गंवाया था
मौलिक सत्व उपेक्षित कर
विसंगतियों को अपनाया था ..


चैतन्ययुक्त जीना प्रति पल
जीवन को जगमग कर देता
तन्द्रा में गुज़रा क्षण कोई
अंतस को डगमग कर देता...


जीना यदि है पल पल जीवन
करें सार्थक हम हर क्षण
योगित कर आगत विगत पल को
करें सकारात्मक हम यह क्षण ...

4 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी रचना....सन्देश देती हुई कि आज के ,इस पल को जियें,भरपूर .

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  2. चैतन्य युक्त जीना प्रतिपल
    जीवन को जगमग कर देता
    तंद्र में गुजरा क्षण कोई
    अंतस को डगमग कर देता

    बहुत गहरे अनुभव से निकली पंक्तियाँ..आभार इस सुंदर कविता के लए !

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  3. आज सुबह से जितनी भी कवितायें पढ़ रहा हूँ सभी बड़ी पोजिटिव और इंस्पायर करने वाली कवितायें हैं..
    बेहद खूबसूरत कविता लगी ये!! :)

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