सम दृष्टि
यथा सृष्टि,
यह प्रकृति ,
ईश्वर के
दिव्य सृजन की
है अभिव्यक्ति .....
२)
अस्तित्व है,
है नहीं अहंकार,
सहजता है
है नहीं प्रतिकार...
३)
पतझड़ है
इंगित मधुमास
ह्रास पश्चात
होता विकास ....
४)
हो प्रकृति से
यदि तारतम्य ,
घटित हो
हृदयत:
सहज और साम्य...
५)
सुस्पष्ट हों
मन के
भ्रम-विभ्रम गरल ,
बन सके मनुज
विनम्र और सरल...