रविवार, 5 फ़रवरी 2012

अलग नहीं मुझसे भी ब्रह्म

चाँद का घटना , 
चाँद का बढ़ना 
सत्य नहीं ,
बस मात्र भ्रम 
चंदा सूरज 
मध्य धरा की, 
आवाजाही का है क्रम 

सत्य शाश्वत 
सदा है रहता 
दृष्टि की सीमाएं हैं 
विस्मय कितने 
छुपे हुए हैं 
सृष्टि जिन्हें समाये है 

मैं क्या हूँ !
एक सूक्ष्म चेतना 
किन्तु अंश हूँ 
ईश्वर का ,,
विस्तारित कर सकूँ 
स्वयं को, 
अर्थ मिटे 
मुझ नश्वर का 

नहीं विलग हूँ 
परम ब्रह्म से, 
अलग नहीं 
मुझसे भी ब्रह्म ...
चंदा सूरज 
मध्य धरा की 
आवाजाही का है क्रम ....





2 टिप्‍पणियां:

  1. नहीं विलग हूँ
    परम ब्रह्म से,
    अलग नहीं
    मुझसे भी ब्रह्म ...
    चंदा सूरज मध्य
    धरा की आवाजाही
    का है क्रम ....

    बेहतरीन पंक्तियाँ हैं।

    सादर
    ----
    जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है

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