शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

रहस्यमयी



कभी होता है रहस्य
मेरी खनकती हंसी में ,
तो हो जाता है
रहस्यमय
कभी मौन भी मेरा

कभी कोई पूछने
लगता है रहस्य
मेरे ना हंसने का
और कोई
ढूँढने लगता है सिरा
मेरे अनवरत बोलने के
सिलसिले का ...

पूछा है कभी क्या
बूंदों से ,बारिश की
क्यूँ बजती हैं
घुंघरुओं की तरह !!
या
क्या फुसफुसा जाती है
हवा चुपके से
पत्तों के कानों में !!
और
क्यूँ हो जाती है
अकस्मात शांत ,गंभीर
वो कल कल करती
उन्मादित ,
वाचाल नदिया !!

कर लो न
स्वीकार ,
मेरा मौन ,
मेरी हंसी ,
मेरे आंसू
और
मेरी बातें
सभी हो सकते हैं
निरर्थक ,
निरूद्देश्य
किन्तु
सहज
स्वयं के ही आनंद में
बिलकुल जैसे ये प्रकृति ...

हूँ ना मैं भी तो
रहस्यमयी
इस प्रकृति की ही तरह ..!!!

7 टिप्‍पणियां:

  1. इस रहस्य को तो कोई रहस्यवादी ही समझ सकता है या वह जो दीवाना हो गया हो...

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  2. इस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  3. rhasmyi prastuti ke liye aabhar.

    mujhe to ab bus maun hi ho jana chahiye.

    जवाब देंहटाएं
  4. rhasmyi prastuti ke liye aabhar.

    mujhe to ab bus maun hi ho jana chahiye.

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रकृति का कोई रहस्य नहीं, वह तो बस जो भला लगा वही करती है। सुंदर प्रस्तुति।

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