मंगलवार, 18 अक्टूबर 2011

नामलेवा



माँगा होगा ना
कितनी मन्नतों से
बेटा तुमने !!
होने को
नामलेवा कोई
तुम्हारे बाद भी !

लेकिन..!

देख लो माँ
और बता देना
पापा को भी ..

किया था न्योछावर
अपना सब कुछ ,
उस बेटे की
जिस संतान पर ,
उसके जन्म से
अपनी मृत्यु तक ,
आज ,
उसी के
विवाह के
निमंत्रण पत्र में
नाम भी नहीं है तुम्हारा ...

नहीं रहा न कोई नामलेवा तुम दोनों का ..
बाद तुम्हारे ....!!!!

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपको बधाई सुन्दर रचना के लिए..

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  2. इतना भी कठोर न बनिए मुदिता जी.
    हालाँकि जो आप ब्यान कर रहीं हैं,
    वह भी सच्चाई होती है,लेकिन असल
    बात यह है कि बेटा हों या बेटी दोनों
    समान ही होते हैं.नामलेवा तो अपने शुभ
    कर्म ही हों सकते हैं, जी.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर न आने के लिए
    आपको क्या कहूँ,मुदिता जी ?

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