रविवार, 21 अगस्त 2011

बन मेघ प्रेम का हो छाये ...

बैरागन से प्रीत निभाने
साजन तुम जब से आये
तृषित धरा की प्यास बुझाने
बन मेघ प्रेम का हो छाये

ना जाने कैसा नाता है
हृदय बहा ही जाता है
मेरे गीतों में डूब गए
मुझको ,मुझसे ही लूट गए
साँसे दे कर मेरी नज़्मों को
तुम दबे पाँव दिल में आये
बन मेघ प्रेम का हो छाये ...

पा प्रेम तेरा इतराऊं मैं
रहूँ कहीं , कहीं भी जाऊं मैं
एहसास तेरा है साथ मेरे
हैं हाथों में अब हाथ तेरे
अपने होने का अर्थ मिला
जब देख मुझे तुम मुस्काए
बन मेघ प्रेम का हो छाये ....

कण कण में प्रेम की धारा है
महका ज्यूँ उपवन सारा है
है रूप इसी का तो भक्ति
देखो ना प्रेम की ये शक्ति
हो पार सभी व्यवधानों से
हम इक दूजे में घुल पाए
बन मेघ प्रेम का हो छाये

6 टिप्‍पणियां:

  1. पा प्रेम तेरा इतराऊं मैं
    रहूँ कहीं , कहीं भी जाऊं मैं
    एहसास तेरा है साथ मेरे
    हैं हाथों में अब हाथ तेरे
    अपने होने का अर्थ मिला
    जब देख मुझे तुम मुस्काए ...

    सुखद एहसास की अभिव्यक्ति .. किसी के होने से प्रेम पींगें बढाने लगता है ... लाजवाब ...

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  2. आपका एक एक शब्द प्रेम का इजहार कर रहा है.
    मुदिताजी,प्रेम रस से सराबोर कर दिया है आपने.
    इस सुन्दर प्रस्तुति का मैं किस प्रकार से आभार प्रकट करूँ, समझ नहीं आ रहा है मुझे.

    परन्तु,आपसे एक शिकायत है मुझे.
    आपने मेरे ब्लॉग पर आने के अनुरोध
    को अब तक भी टाला हुआ है.
    क्या कोई गल्ती हुई है मुझ से?
    आपके सुवचन मुझे किस प्रकार से
    प्रेरित करते हैं,मैं कह नहीं सकता.

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  3. बेह्द सुन्दर भाव भरे हैं भक्ति रस मे डूबी एक अति उत्तम रचना………आप को कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनायें

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  4. बैरागन से प्रीत निभाने
    साजन तुम जब से आये
    तृषित धरा की प्यास बुझाने
    बन मेघ प्रेम का हो छाये ..
    ...
    मेघ मुबारक हो मुदिता जी और उससे भी पहले प्यास मुबारक हो क्यों की मेघ का अस्तित्व ही प्यास पर निर्भर है ...धरा यदि तृषित नहीं है तो मेघ हा होना या ना होना कोई मायने नहीं रखता !

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  5. लाजवाब ..
    श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

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