रविवार, 17 जुलाई 2011

कब नदिया प्रीत निभाना जाने !! (आशु रचना )

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कब नदिया प्रीत निभाना जाने !
हर पल बस अविरल बहना जाने ...
कब नदिया प्रीत निभाना जाने !!

हो जाए शुष्क कभी सूर्य रोष से...
भर जाए कभी फिर अब्र जोश से...
बाँध लगा दे मानव फिर भी
जगह बना कर रिसना जाने
कब नदिया प्रीत निभाना जाने !

शीतल ,सरल ,सलिल की धारा
हो जाए प्रचण्ड लीले जग सारा
मानव के कर्मों के फल का
दोष भी खुद पर सहना जाने
कब नदिया प्रीत निभाना जाने ..!!

नहीं है रुकना ,नहीं अटकना
चाह नहीं ,ना गिला ही करना
राह में मिलते पथिकों की ये
उत्तप्त प्यास बुझाना जाने
कब नदिया प्रीत निभाना जाने !!!


4 टिप्‍पणियां:

  1. बाँध लगा दे मानव फिर भी
    जगह बना कर रिसना जाने
    कब नदिया प्रीत निभाना जाने !

    अति सुन्दर,भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,मुदिताजी.

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  2. नहीं है रुकना ,नहीं अटकना चाह नहीं ,ना गिला ही करना राह में मिलते पथिकों की ये उत्तप्त प्यास बुझाना जाने कब नदिया प्रीत निभाना जाने !!!

    नदिया तो माँ की तरह केवल प्रीत ही निभा रही है मानव उसकी कीमत भुला कर मैला कर रहा है...

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  3. आदरणीया मुदिता जी,
    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.
    अविरल बहना ही नदिया की प्रीत है,
    अविरल लिखना कलम की प्रीत.

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  4. नहीं है रुकना ,नहीं अटकना
    चाह नहीं ,ना गिला ही करना
    राह में मिलते पथिकों की
    ये उत्तप्त प्यास बुझाना जाने
    कब नदिया प्रीत निभाना जाने !!!
    मुदिता जी ...सागर से कम नही स्वीकार्य है नदिया को ....मेरी तरफ से वेगवती को सागर की दुआएं ...क्यों की एक लम्बी यात्रा के बाद हर नदिया सागर को तलाशती है....हर लहर किनारा ढूंढती है...बहुत स्तरीय रचना जिसके लिए आप जाने जाने जाते ही. बहुत बहुत बधाई !

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