पाना, खोना हँसना ,रोना
है भ्रम हमारी दृष्टि का
वो मंद मंद मुस्काता है,
सब खेल रचा कर सृष्टि का .....
कब मिलन हुआ ,कब बिछुड़े हम,
क्यूँ याद रखें ,क्यूँ करना ग़म !
जिस पल बरसा बादल कोई ,
बस वही समय है वृष्टि का ...
वो मंद मंद मुस्काता है,
सब खेल रचा कर सृष्टि का .....
बीते अनुभव पर अटक गए ,
यूँ नयी दिशायें भटक गए
बिन खुले कभी क्या जान सका
कोई राज़ कभी ,बंद मुष्टि का !!!
वो मंद मंद मुस्काता है,
सब खेल रचा कर सृष्टि का .....
पाना, खोना हँसना ,रोना
है भ्रम हमारी दृष्टि का !
बीते अनुभव पर अटक गए ,
जवाब देंहटाएंयूँ नयी दिशायें भटक गए
बिन खुले कभी क्या जान सका
कोई राज़ कभी ,बंद मुष्टि का !!!
वो मंद मंद मुस्काता है,
सब खेल रचा कर सृष्टि का .....shristi ke rachna kaa rahasy kholatee rachna...badhiya.
वाकई.....खुशी-दुःख ,जीत-हार ... ....सब भ्रम है !सच्चाई ,सरल सीधे शब्दों में .
जवाब देंहटाएंयकीनन दृष्टि का ही भेद है ...
जवाब देंहटाएंsunder rachna ...!!
बहुत खूब ,मुदिता जी.
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी नज़र है आपकी.
bahut hi sunder rachana
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ! जीवन का भेद खोलती है आपकी गहरी नजर !
जवाब देंहटाएंजीवन भेद खोलती एक बेहद उत्तम रचना।
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