सोमवार, 20 जून 2011

वो मंद मंद मुस्काता है....

पाना, खोना हँसना ,रोना
है भ्रम हमारी दृष्टि का
वो मंद मंद मुस्काता है,
सब खेल रचा कर सृष्टि का .....

कब मिलन हुआ ,कब बिछुड़े हम,
क्यूँ याद रखें ,क्यूँ करना ग़म !
जिस पल बरसा बादल कोई ,
बस वही समय है वृष्टि का ...
वो मंद मंद मुस्काता है,
सब खेल रचा कर सृष्टि का .....

बीते अनुभव पर अटक गए ,
यूँ नयी दिशायें भटक गए
बिन खुले कभी क्या जान सका
कोई राज़ कभी ,बंद मुष्टि का !!!
वो मंद मंद मुस्काता है,
सब खेल रचा कर सृष्टि का .....

पाना, खोना हँसना ,रोना
है भ्रम हमारी दृष्टि का !

7 टिप्‍पणियां:

  1. बीते अनुभव पर अटक गए ,
    यूँ नयी दिशायें भटक गए
    बिन खुले कभी क्या जान सका
    कोई राज़ कभी ,बंद मुष्टि का !!!
    वो मंद मंद मुस्काता है,
    सब खेल रचा कर सृष्टि का .....shristi ke rachna kaa rahasy kholatee rachna...badhiya.

    जवाब देंहटाएं
  2. वाकई.....खुशी-दुःख ,जीत-हार ... ....सब भ्रम है !सच्चाई ,सरल सीधे शब्दों में .

    जवाब देंहटाएं
  3. यकीनन दृष्टि का ही भेद है ...
    sunder rachna ...!!

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खूब ,मुदिता जी.
    बहुत गहरी नज़र है आपकी.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर ! जीवन का भेद खोलती है आपकी गहरी नजर !

    जवाब देंहटाएं
  6. जीवन भेद खोलती एक बेहद उत्तम रचना।

    जवाब देंहटाएं