पा कर
विलायक
जल को ,
घबरा गयी थी
डली गुड़ की ,
अपने
अस्तित्व के
खो जाने के
भय से
कर लिया था
पृथक
खुद को
तत्क्षण ही
जल से उसने
होते ही
अंदेशा
इस सम्भावना का ..
किन्तु !!!
हो गए हैं
परिवर्तित
गुण -धर्म
जल के
और
भर गयी है मिठास
स्वाद में
उस के
गुड़ के
आंशिक विलय से
करना पृथक
जल से
गुड़ के
अंश को
नहीं है
अब संभव
क्यूंकि
ले लिया है
स्वाद
जल ने
अद्वैत का !!!!
इश्क हक़ीकी का मज़ा लेने के बाद अब इश्क मजाज़ी कौन करे.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब है आपकी अध्यात्मिक नज़र.
गहरी पैठ.
शुभ कामनाएं.
जिसने ये स्वाद चख लिया फिर कोई चाह नही बचती।
जवाब देंहटाएंजल के स्वभाव कि यही तो विशेषता है कि जो ,जैसा,जितना,जहाँ उसमें मिलाया जाता है वो उसी सा हो जाता है .................अद्वैत की अच्छी व्याख्या !!
जवाब देंहटाएंजल ने स्वाद लिया लेकिन घबरा तो गुड की डली गयी थी न ? आभार !
जवाब देंहटाएंगुड़ की डली जल में घुलने से घबरा गई,और तत्क्षण जल से पृथक कर लिया उसने.
जवाब देंहटाएंपरन्तु आंशिक विलय से जल में मिठास भर गई और जल ने अद्वैत का स्वाद ले लिया.यह तो एक बात हुई.
परन्तु ,मुदिता जी, जल में गुड की डली को जल की थाह पाने के लिए तो घुलना ही पड़ेगा. तभी गुड की डली भी जल बनकर अद्वैत का स्वाद चख पायेगी.
आप मेरे ब्लॉग पर फिर से आने की कोशिश कीजियेगा.
शायद अब टिपण्णी पब्लिश होने की समस्या से छुटकारा मिल गया है.आकर 'सरयू' स्नान का आनंद लीजियेगा.
करना पृथक जल से गुड़ के अंश को नहीं है अब संभवक्यूंकि ले लिया है स्वादजल ने अद्वैत का !!!!aur is swaad ke baad koi dwand kahan
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