मंगलवार, 24 मई 2011

अम्बर के काँधे पे ....

अम्बर के
काँधे पे जब,
सर रख कर
अवनि सोती है
कितना भी हो
तिमिर घनेरा
हर रात की
सुबह होती है

सूर्य किरण
चूमे ललाट
तब
धरा की देखो
आँख खुले
बहती बयार के
संग संग
इस जीवन का
हर रंग खिले
खिल उठती हँसी
उन्ही में है
जो आंसू
शबनम रोती है
अम्बर के
काँधे पे जब
सर रख कर
अवनि सोती है .....

उन्मीलित
नयनों से
धरती
क्षितिज को देखो
ताक रही
मन के
सिन्दूरी रंगों को
चेहरे पर उसके
भांप रही
उल्लासित
मन के उपवन में
बीज प्रेम का
बोती है
अम्बर के
काँधे पे जब
सर रख कर
अवनि सोती है




6 टिप्‍पणियां:

  1. उल्लासित मन के उपवन में बीज प्रेम का बोती है अम्बर के काँधे पे जब सर रख कर अवनि सोती है

    अदभुत आनंद का संचार कर रही है आपकी यह अनुपम अभिव्यक्ति.
    आप हमेशा ही मन को मुदित कर देतीं हैं 'मुदिता'जी

    मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार हो रहा है.

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  2. उल्लासित मन के उपवन में बीज प्रेम का बोती है अम्बर के काँधे पे जब सर रख कर अवनि सोती है
    khoobsurat abhivyakti

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  3. बहुत सुन्दर भाव संयोजन्।

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  4. समझ में नही आ रहा कि बधाई अम्बर को दूँ या अवनि को ....पुण्य सलिला हैं आप मुदिता जी....नाद है एक इस शांत कविता में आप जरा देखना तो आप ने क्या लिखा है...
    "उन्मीलित नयनों से धरती क्षितिज को देखो ताक रही"
    खैर आपकी कलम को तो मैं शुरू से ही मनाता हूँ मगर अब तो आप शिखर पर हैं इस कविता में !

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