शनिवार, 5 मार्च 2011

सवेरे-सवेरे.. (आशु रचना )..

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है हक़ीक़त या ख़्वाब है, सवेरे-सवेरे
साथ तेरा नायाब है ,सवेरे-सवेरे

आब-ए-शब से भीगे गुलों पर भी देखो
कि उमड़ा शबाब है ,सवेरे-सवेरे

उनींदा अभी भी आगोश -ए-बादल
सिमटा आफताब है ,सवेरे-सवेरे

उतरती नहीं एक लम्हा भी दिल से
पुरअसर शराब है ,सवेरे-सवेरे

सबा छू के उनको ,चली मुझ तक आई
असर लाजवाब है ,सवेरे-सवेरे

4 टिप्‍पणियां:

  1. सबा छू के उनको ,चली मुझ तक आई
    असर लाजवाब है ,सवेरे-सवेरे


    लाजवाब प्रस्तुति-- मुदिता जी .

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  2. उनींदा अभी भी आगोश -ए-बादल
    सिमटा आफताब है ,सवेरे-सवेरे
    subhanallah

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  3. सबा छू के उनको ,चली मुझ तक आई
    असर लाजवाब है ,सवेरे-सवेरे

    बहुत खूब ,,... इतनी लाजवाब ग़ज़ल है सवेरे सवेरे ...
    गहरे प्रीत के भाव लिए असरदार ग़ज़ल ..

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  4. सबा छू के उनको ,चली मुझ तक आई
    असर लाजवाब है ,सवेरे-सवेरे
    बहुत खूब.

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