मन के भावों को यथावत लिख देने के लिए और संचित करने के लिए इस ब्लॉग की शुरुआत हुई...स्वयं की खोज की यात्रा में मिला एक बेहतरीन पड़ाव है यह..
मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011
राहत-चाहत
होती है साथ रहने में जिसके लौकिक राहत ... नहीं होती क्यूँ उसके दिल में साथ होने की चाहत .... पनपती है साथ उसका पाने की चाहत... मिल जाती है रूह को जिससे, अलौकिक राहत
rooh ki chahat rab jane...kyun ki ruh ko hi ham rab mane....rooh me sammilit ekkar ho gayi hai har ek chah...Paramkrupa parmatma ki mil gayee raah.....!
rooh ki rahat pane ki chahat ... alaukik aadaan pradan
जवाब देंहटाएंअलौकिक चाहत से राहत की बात...वाह...बेजोड़ रचना..
जवाब देंहटाएंनीरज
खुबसुरत भावाभिव्यक्ति........
जवाब देंहटाएंrooh ki chahat rab jane...kyun ki ruh ko hi ham rab mane....rooh me sammilit ekkar ho gayi hai har ek chah...Paramkrupa parmatma ki mil gayee raah.....!
जवाब देंहटाएंमुदिता जी,
जवाब देंहटाएंसुन्दर अहसासों से सजी पोस्ट......