सोमवार, 3 जनवरी 2011
जायज़ रिश्ते .....
कुछ जायज़ हैं
कुछ सम्मानित
दुनिया के
परिभाषित रिश्ते...
परिभाषाओं से
हट कर भी तो
जुड़ते हैं
रूहानी रिश्ते...
ना दे सकते
नाम कोई भी
पूछेगा जो
कोई हमसे
एहसासों की
डोर बँधी है
जुड़े हुए जो
तुझसे मुझसे
किस साँचे में
ढालेंगे हम
दुनिया से
अनजाने रिश्ते
कुछ जायज़ हैं
कुछ सम्मानित
दुनिया के
परिभाषित रिश्ते...
मानव का
संसार अजूबा
गिने चुने
रिश्तों को माने
पवन पुष्प को
छू कर निकले
बंधन तो वो
ना पहचाने
करें सुवासित
मन उपवन को
कहने को
बेगाने रिश्ते
कुछ जायज़ हैं
कुछ सम्मानित
दुनिया के
परिभाषित रिश्ते...
तू दुनिया के
किसी छोर पर
मैं दुनिया के
किसी छोर पर
कंपन स्पंदन
हैं पूरक
जुड़े हों जैसे
एक डोर पर
राधा कान्हा
भी थे ऐसे
पुजते उनके
पावन रिश्ते
कुछ जायज़ हैं
कुछ सम्मानित
दुनिया के
परिभाषित रिश्ते .....
नया कांसेप्ट है …………अच्छा लिखा है।
जवाब देंहटाएंमुदिता जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना.....सच है कुछ रिश्तों को परिभाषाओं की ज़रुरत नहीं होती ......
हमने देखी है हवाओं की महकती खुशबू......
जवाब देंहटाएंवाह मुदिता जी.......परिभाषाओं से परे है यह भाव.
मुदिता जी, बहुत प्यारी बात कह दी है आपने।
जवाब देंहटाएंसचमुच मन प्रसन्न हो गया।
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मिल गया खुशियों का ठिकाना।
वैज्ञानिक पद्धति किसे कहते हैं?