रविवार, 2 जनवरी 2011

क्षमा दान ...


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भ्रम न हो
दानी होने का
दे कर कभी
क्षमा का दान
देते नहीं हम
कुछ दूजे को
करते नहीं
कोई एहसान ....

क्षमा प्रवृति
रखती है
निज को,
मुक्त
किसी भी
दुर्भाव से,
कुंठाएं फिर
नहीं पनपती
बोझिल मन के
व्यर्थ ताव से,
जो भी मिलता
स्वयं को मिलता
ऐसा अद्भुत
है ये दान,
नहीं देते हम
कुछ दूजे को
करते नहीं
कोई एहसान ....

त्रुटियाँ दूजों की
बिसरा कर
स्नेह ,
प्रेम की
जगह बनायें ,
जान प्रवृति
दुष्टों की हम
स्वयं को उनसे
न टकराएँ
क्रोध ,
द्वेष ,
प्रतिशोध
से मिलता
सहज
तरलता में
व्यवधान ,
भ्रम न हो
दानी होने का
दे कर कभी
क्षमा का दान .........

4 टिप्‍पणियां:

  1. बदला ,द्वेष ,क्रोध देता है
    सिर्फ तथाकथित अपमान



    सटीक बात कही है आपने -
    बहुत सुंदर रचना -
    नववर्ष की शुभकामनाएं.

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  2. क्षमा बड़न को चाहिए......

    उपदेशात्मक रचना.....सुन्दर.

    जवाब देंहटाएं
  3. मुदिता जी,

    आज अमृता जी के ब्लॉग से आपके ब्लॉग पर आना हुआ.....आपका ब्लॉग अच्छा लगा....रचना की पहली ही पंक्ति ने मन मोह लिया....बहुत सुन्दर .....

    इस उम्मीद में आपको फॉलो कर रहा हूँ की आगे भी ऐसे ही रचनाएँ पढने को मिलेंगी.......शुभकामनायें|

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