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जज़्ब करके भी
धाराएं स्नेह की
रहता है
समंद रेत का
सूखा सूखा सा..
बुझती नहीं
दोहन से रेत के
प्यास कभी
पथिक की ..
समा कर
अन्तरंग में
धरती के
फूट पड़ती है
जल की धार
पा कर
परिस्थितियाँ
अनुकूल अपने ....
जज़्ब करके भी
धाराएं स्नेह की
रहता है
समंद रेत का
सूखा सूखा सा..
बुझती नहीं
दोहन से रेत के
प्यास कभी
पथिक की ..
समा कर
अन्तरंग में
धरती के
फूट पड़ती है
जल की धार
पा कर
परिस्थितियाँ
अनुकूल अपने ....
khyaal yun hi ..... kitna kuch kah gaye
जवाब देंहटाएंbadhiya !!
जवाब देंहटाएंफूट पड़ती है
जवाब देंहटाएंजल की धार
पा कर
परिस्थितियाँ
अनुकूल अपने ....
स्नेह की दो बूंद ही जीवन का संबल बन जाती हैं।
bahut umda rachna..aabhaar.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर!
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