केंद्र पर स्थिर
तनी हुई धुरी
नियति के अनुरूप
करती संतुलित
अपने इर्द गिर्द
घूमते
चाक को ...
क्षणिक विचलन
बना देता है
दोषी उसको
सारी
अस्त्व्यस्तताओं का...
नहीं अधिकार
विचलित होने का
नितांत एकाकी
धुरी को
क्यूंकि
स्थिरता उसकी
कराती है
कुम्हार के हाथों
दोषरहित सृजन .....
धुरी बिना जीवन अधूरी ...
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