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प्रेम भक्ति से पूर्ण भोग है
अर्पण तुझको भगवन
ग्रहण करो तुम भाव ये मेरे
हो आनंदित मन तन
अहम् क्रोध विद्वेष को तज कर
हृदय करूँ मैं निर्मल
निर्लिप्त रहूँ मैं जग में रह कर
ज्यूँ पंकज कोई खिल कर
प्रेम तुम्हारा राह दिखाए
रौशन हो हर कण कण
ग्रहण करो तुम भाव ये मेरे
हो आनंदित मन तन .......
भक्ति मेरी निश्छल ईश्वर
नहीं पास कुछ मेरे
मन मंदिर में बसा के तुझको
पाँव पखारूँ तेरे
जो कुछ भोगा जग में मैंने
सर्वस्व तुझी को अर्पण
ग्रहण करो तुम भाव ये मेरे
हो आनंदित मन तन.....
सुन्दर भाव!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना ...आभार
जवाब देंहटाएंमधुर...श्वेत... :) :) बहुत ही प्यारा सा...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावों से भरी रचना ...
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar bhakti
जवाब देंहटाएंaur samparpan ke bhav hain