बुधवार, 18 अगस्त 2010

लिबास ...(आशु रचना )


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लिबास से
उसके
लगाया था
कयास
उसकी
शख्सियत का

कितनी
गाफिल थी ,
लिबास से
होता है
अंदाज़ा
फक़त
हैसियत का

वो भी तो
होता है
गुमाँ
ज़्यादातर
निगाहों का
ही
लेकिन

दिल पर
नहीं होता
असर
कभी,
ऐसी
किसी
कैफियत का ....

9 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर और अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति. शुभकामनायें.

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  2. कितनी कुशल और निपुण बुनाई है इस लिबास की...बहुत ही सुन्दर.

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  3. बहुत सही आंकलन ..लिबास देख ही धोखा खा जाते हैं ...

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  4. लिबास ने बहुतों को ठगा है.
    लिबास सख्शियत का आईना तो नही है ..

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  5. mudritaa bhn libaas pr aapne bhut khun chnd alfaazon men likh daalaa he amdaaz achchaa lgaa bdhaayi ho. akhtar khan akela kota rajsthan

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  6. आजकल ज्यादातर लोग आदमी की पहचान तो उसके कपड़े से करते हैं
    अच्छा व्यंग्य किया है आपने.
    एक बेहतर रचना के लिए आपको बधाई

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  7. मुदिता जी...

    कपडे कभी नहीं दे पाते...
    मन के भावों का कोई ज्ञान...
    तन ढंकने से ज्यादा उनकी..
    होती न कोई पहचान...

    सुन्दर भाव...

    दीपक...

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  8. deh bhi to hai

    vstr sa ek bahy aavran

    aatma ti shuddh hi hai

    fir kyon aakarshit ho

    kya tan aur kya man



    aapki yah kavita ati uttam

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