बुधवार, 28 जुलाई 2010

चेतन...(आशु रचना )

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सत्य को पाने को होते
बस दो ही हैं रास्ते
डूब के पाओ मृत्यु में या
खो जाओ जीवन के वास्ते

पर दोनों में साम्य है गहरा
चेतन मनवा कहीं न ठहरा
डुबो के जीवन या मृत्यु में
सजग रहे चैतन्य का पहरा

वरना जीवन सभी हैं जीते
फिर क्यूँ मन रह जाते रीते
मौत भी क्या सच दे पाती है
मिल जाती जो सहज सुभीते

बिन चेतन के राह न कोई
ढूंढें गाफ़िल ,मंज़िल खोयी
हर पल का आनंद है जीवन
सजग दृष्टि जब जब न सोयी

बुद्ध ने पाया त्याग के जीवन
मीरा पा गयी प्रेम लगन संग
पायी दोनों ने ही मंज़िल
निमित्त बना था उनका चेतन

करो जागृत इस चेतन को
निज को देखो,जानो ,परखो
बढ़े चलो बस राह सत्य की
करो न विचलित अंतर्मन को .......

4 टिप्‍पणियां:

  1. Hi..

    Tyag Budh ne kiya tha ghar ka..
    Meera ka tha prem ka rasta..
    Satya aur chetan paya man main..
    Jab bhi fera manka man ka..

    Deepak..

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  2. मौत भी क्या सच दे पाती है,
    मिल जाती जो सहज सुभीते.

    अहा...कितना मधुर हुआ, जैसे कोई यज्ञ चल रहा हो..

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