गुरुवार, 22 जुलाई 2010

साथ ही हैं हम.....


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गुज़रते
वक़्त के
संग ,
हो रही
सांसें भी
अब
मद्धम ...
चले आओ,
छुपा लो
मुझको
बाँहों में
मेरे हमदम ....

संजो लूं
मैं
तेरी
हर
सांस,
हर
धड़कन
मेरे
दिल में ...
यही
एहसास
पाने को,
हों पल
कुछ
साथ
कम से कम ....

तेरी
नज़्मों को
छू कर,
छू लिया
जैसे
तुझे
मैंने ...
मिलूंगी
मैं भी
बन
गज़लें,
चले
जब भी
तेरी कलम ....

ये माना
दूर
होगे तुम ,
निगाहों से ,
छुअन
से भी ...
पवन
पुरवा
छुए
तुमको ,
समझना
छू रहे
हैं हम .....

हैं आँखें
नम

दिल भारी
घड़ी वो
आ गयी
आख़िर.....
निकलती
जान
जिस्मों से,
जुदा
होने को
है धड़कन ....

विदा
लेने को
आये,
कस के
बाहों में
कहा
तुमने....
क्यूँ
रोती हो,
कहाँ दूरी
ये देखो ,
साथ ही हैं हम .....

2 टिप्‍पणियां:

  1. Hi..

    Man main jo tere basa..
    Wo door kaise jayega..
    Har gazal ke sher main..
    Teri nazar wo aayega..

    Uski nazmon main rahogi..
    Tum bhi bhavon si basi..
    Teri dhadkan sang uski..
    Dhadkanen lagti chali..

    Jo hai tere sang hardam..
    Fir vida ki baat kya..
    Har kadam uska hai sang main..
    Sang wo chalta raha..

    Sundar 'ahsaas antarman ke..'

    Deepak..

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  2. बहुत सुन्दर....सारी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक

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