शनिवार, 29 मई 2010

तेरी हस्ती का ख़ुमार

करती हैं ,हिज्र की रातें,तप तप के बेक़रार
सुकूँ दे जाते हैं ,दिल को, तसव्वुर के आबशार

कभी होते हैं हम साथ ,वादी-ए -कश्मीर में
गुज़रती हैं चांदनी रातें कभी ,रेगिस्तान-ए-थार

बहक जाती हूँ ,महक पा के तेरी साँसों की
खयालों में ,यूँ समां हो जाता है गुलज़ार

साथ तेरा,भले न हासिल हो , मुझे हकीक़त में
हर लम्हा ,मेरे ख़्वाबों  में, तू है रहता  शुमार

होश खो बैठे है , देखा जो तुझे एक नज़र
बाअसर है सनम ,मुझपे ,तेरी हस्ती का ख़ुमार

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