शुक्रवार, 21 मई 2010

सफर-ए -मोहब्बत

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सफर-ए -मोहब्बत
में
गर
बचाना
चाहते हो
खुद को
फिसलने से
तो
ए हमदम...!!
सूखे
आंसुओं से
भीगी
बेगानियत की
पगडण्डी पर
रखना
कदम
संभल
के हरदम .....!!

2 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्कार जी...

    जिसे बेगाना कोई समझे,
    उस से प्यार न हो सकता..
    जिसको अपना माने कोई..
    प्यार उसी से हो सकता...

    अगर फिसल भी गए कभी तो,
    आकर वही संभालेगा ...
    गिरने न देगा वो तुमको..
    पलकों पे वो बिठा लेगा .

    हमेशा की तरह सुन्दर कविता...

    दीपक शुक्ल...

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  2. सूखे आसुओं से भीगी पगडण्डी पर फिसलन - जबाब नहीं

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