बुधवार, 27 जनवरी 2010

कफ़स

कफस की क़ैद में
कर सकते हो
इस जिस्म को पाबंद
मगर सय्याद मेरे
निगाहों में बसा
आकाश मुझसे
कैसे छीनोगे...

करा ले जाएगा
आज़ाद इक दिन
ये ही जज़्बा
जिस्म भी मेरा
पतंग मन की उड़ेगी
डोर तुम फिर
कैसे खींचोगे ...

बनाया इक चमन
बाड़ों, दीवारों से
घिरा तुमने
जो गुल खिलता है
खुद दिल में
उसे तुम
कैसे सींचोगे...

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