बुधवार, 20 जनवरी 2010

उनींदी--(आशु रचना )


था वो एक ख्वाब
या हकीकत थी
उनींदी आँखों में
उतर आये थे तुम
सपना बन कर
संजो कर
छवि को तेरी
पलकों से
ढक लिया
था मैंने
कितना आसान
हो गया है
देखना तुमको
जब चाहूँ
पलकें मूँद लेती हूँ

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