बुधवार, 6 जनवरी 2010

क्यूँ है??

वही ज़िन्दगी,वही है जीवन
बदला आलम लगता क्यूँ है
फूल वही तो खिले चमन में
महक
उठा तन मन क्यूँ है

सब कुछ है पहले ही जैसा
बस बदला है अंतस मेरा
बादल बारिश हवा फिजायें
सबमें छाया है चेहरा तेरा
घुला घुला सा तुझमें ये मन
पिघला पिघला सा तन क्यूँ है
फूल वही तो खिले चमन में....


हर शै गाती गीत मिलन के
झूम उठे सब भाव हिय के
कल कल मन की नदिया बह कर
पाँव पखारे उद्दीप्त प्रिय के
रोशन उसके होने से जग
निखरा निखरा हर पल क्यूँ है
फूल वही तो खिले चमन में ..............

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