सोमवार, 7 दिसंबर 2009

प्रेम-वंदना

मान नहीं, अभिमान नहीं है
प्रेम है क्या ये ज्ञान नहीं है

पर कोमल मन की अभिलाषा
तुझे समर्पित,मेरी हर आशा

हर पल तुझको खुद में पाऊँ
यादें क्या? कुछ भूल तो जाऊँ.!!

ले सहेज तनिक उर में अपने
जिए हैं तेरे साथ जो सपने


सपनों की दुनिया भी निराली
भरा नहीं कुछ,नहीं है खाली

मेरा मन बन गया है दर्पण
भाव किया हर,पूर्ण समर्पण

दिल चाहे बन जाऊँ मानिनी
कभी रिझाऊँ ,हो जाऊँ कामिनी

नारी मन के भाव सरल हैं
अमृत हैं ये,नहीं गरल हैं

मन तुझ पर अमृत बरसाए
बूँद देख कोई व्यर्थ न जाए

सूर्य है तू और सूर्यमुखी मैं
लगूं अंक हो जाऊँ सुखी में

पिघलूं तेरी उष्ण बाँहों में
तर्पण हो मन इन राहों में

तेरी किरणों से हो आलोकित
कर दूँ मन उपवन प्रकाशित

प्रेममय मन तुझको अर्पित
अहम्,क्रोध, सब हुए विसर्जित

कर दे मन को निर्मल इश्वर
प्रेम के पथ मिलता परमेश्वर

3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेममय मन तुझको अर्पित
    अहम्,क्रोध, सब हुए विसर्जित

    bahut sundar bhav liye huye hai ye rachna....bahut bahut badhai

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  2. Hi Mudita ...

    Its an amazing piece " Prem Vandana "...You deserve a lot of appreciation ..

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  3. मान नहीं, अभिमान नहीं है
    प्रेम है क्या ये ज्ञान नहीं है

    पर कोमल मन की अभिलाषा
    तुझे समर्पित,मेरी हर आशा

    मुदिता जी ..
    प्रेम है क्या ये ज्ञान नहीं है ..और ये मर्मस्पर्शी कविता ..जितनी भी प्रसंशा की जाए कम होगी
    कर दे मन को निर्मल इश्वर
    प्रेम के पथ मिलता परमेश्वर.....
    ...
    आप का का हर कथन सत्या है.

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