शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

मिलन.....(आशु रचना)

उम्र कोई हो
देश कोई हो
काल कोई हो
क्या करना
तेरे भावों ने
इस दिल का
श्रृंगार किया
बन के गहना

रही तडपती
एक बूँद को
जैसे हो मीन
समुन्दर में
बदरी घिर घिर
कर न बरसी
चातक देखे
अम्बर में
बरसाया जो तूने
अमृत
उस के स्वाद का
क्या कहना
दिल से दिल के
तार जुड़े जब
दूरी तुझसे
क्या सहना

मिलन आत्मा का होता है
देह तो नश्वर होती है
साधन होता
साध्य कभी भी
मंजिल
परमेश्वर होती है
रूह से रूह का
मेल हुआ जब
देह भावः में
क्या बहना
तेरे भावों ने
इस दिल का
श्रृंगार किया
बन के गहना .........

1 टिप्पणी:

  1. देश कोई हो
    काल कोई हो
    क्या करना
    तेरे भावों ने
    इस दिल का
    श्रृंगार किया
    बन के गहना
    ...
    ...
    सोंच रहा हूँ जीवन कितना परिवर्तनशील है ...पता नहीं ये पल कब हाथ से निकल जाए ..इस लिए देश और काल की चिंता नहीं नहीं !!

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