रविवार, 6 नवंबर 2022

कभी तो...!!!!!


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उतरा था एक साया 

रूह की गहराइयों में

नज़र की शुआओं से

छलक जाए

कभी तो.....!!


उतर आई है नफ़स में

मौसिकी उसकी ,

ख़ुमार हस्ती पे गर 

तारी हो जाए

कभी तो....!!


थिरकती है धड़कन उसकी,

दिलों की ताल पर

वजूद उसके में 

मेरा अक्स 

झलक जाए

कभी तो....!!


यादों के दरीचों से 

सुनी है

बिसरी सी धुन कोई 

उसके ज़ेहन पे भी 

वो छा जाए

कभी तो ....!!


तलाशती हूँ एक खोया मिसरा

सुरों की बंदिश में,

हो जाये ग़ज़ल पूरी

हर्फ़ अपने वो

लिख जाए

कभी तो....!!


मायने:

शुआओं-रोशनी

नफ़स-साँस

मौसिकी-संगीत

ख़ुमार-नशा

दरीचों-खिड़कियों

मिसरा-शेर की एक पंक्ति

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