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रूहानी राबिते थे
जिस्मानी बंदिशों में
मरासिम वो पुराना था,
अनजान पैरहन में....
ग़म कोई नहीं दिल को
हर नफ़स है नाम उसका
फिर कैसी नमी है ये
नज़रों के कहन में....
जिस्मों का जुदा होना
मौजूँ ही नहीं अपना
घुटती हैं फिर क्यों रूहें
मा'शर के रेहन में .....
उससे बिछुड़ के मिलना ,
और फिर से बिछुड़ जाना
बिखरे हों हरसिंगार ज्यूँ
दिल के सहन में...
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मायने-
राबिते- सम्बन्ध/connection
मरासिम- जानपहचान/bond
पैरहन- पहने हुए कपड़े/cloths
नफ़स-साँस/breath
मौजूँ-विषय/subject
मा'शर -समाज /society
रेहन - बंधक / mortgaged
सहन-आँगन/courtyard
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 27 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुन्दर लेखन
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंनए अंदाज की बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंउससे बिछड़ के मिलना ,
और फिर से बिछड़ जाना
बिखरे हों हरसिंगार ज्यूँ
दिल के सहन में...👌👌👌
बहुत समय से यहां कुछ लिखा नहीं?
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