गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

मीठी सी सरगोशी ....


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कूचा-ए-दिल में आज फिर
मीठी सी सरगोशी है
छू गयी हैं रूहें दफ़अतन
जिस्मों पे मदहोशी है ....

ये मजलिसें हैं मौन की
नज़रों से होती गुफ़्तगू
कहने सुनने का है सिलसिला
पसरी लब पे ख़मोशी है...

जगती हुई दो आँखों में
कुछ ख़्वाब यूँही पल बैठे है
राहे मंज़िल पर साथ तेरे,
कदमों में पुरजोशी है....

माफ़ी ख़ुद से भी माँग चुके
रिश्तों में बदगुमानी की
हुए हैं रोशन दिल ओ ज़ेहन
नज़रों में बाहोशी है ....

मायने:

कूचा-गली
सरगोशी-फुसफुसाहट
दफ़अतन-अचानक
मजलिस-बैठक
गुफ़्तगू-बातचीत
पुरजोशी-पूरा जोश
बदगुमानी-संदेह
बाहोशी-सजगता

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