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चेताया है कुदरत ने
अनगिनत बार
अहंकारी मानव को ,
किन्तु अपने गुरुर में डूबा वो
करता रहा निरंतर दोहन
प्राकृतिक संपदाओं का
नहीं सीखा उसने करना सम्मान
मातृस्वरूपा धरा का
जान ही नहीं पाया वह
अपने भटकाव को
अंध प्रतिस्पर्धा में झोंक कर
स्वयम को
भूल बैठा कि
जीवन नैसर्गिक है
जीवन सहज और सरल है ...
एक बार फिर से
चेता दिया है प्रकृति ने
दिया है उसने अवसर
विश्व व्यापी "आपदा"
कोरोना के रूप में.....
अनायास "अवसर"
खुद में सिमट आने का
जड़ों तक लौट जाने का
थम के स्वालोकन करने का
आडम्बरपूर्ण आयोजनों से मुक्त
खुशियों के उत्सव मनाने का
भूले बिसरे पलों को
प्रियजनों संग शिद्दत से जी पाने का...
हो जाएं संवेदनशील
विनम्र ,कोमल और समर्पित
सहअस्तित्व के लिए
कर लें सम्मान
स्वयं के साथ अन्यों का भी
नहीं है कोई महत्व हमारा
हो कर पृथक अस्तित्व से
यही है संदेश प्रकृति का
समग्र मानवता के लिए..
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 21 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुंदर और सार्थक संदेश देती बेहतरीन सृजन ,सादर नमस्कार आपको
जवाब देंहटाएंसुंदर, सामयिक और सार्थक सूत्रों को सहेजती रचना। बधाई और आभार।
जवाब देंहटाएंसही कहा है
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