शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

एहसासात रूह के......


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आते हो तुम
कभी मेहमान
कभी अनजान
कभी अपने
कभी पराये
कभी गहन
कभी सतही
हो कर
और लौट भी जाते हो.....

कुछ कुछ रह जाते हो
फिर भी
कभी तरलता
कभी सरलता
कभी खुशबू
कभी छुअन
कभी तड़प
कभी सुकून
हो कर
बाकी मुझमें..

चाहती हूँ उतारना
खाली पन्नो पर तुमको
बाज़रिया कलम के
मगर कैसे उतरें
एहसासात रूह के
जिस्म से गुज़र कर .....

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