शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

याद तुम्हारी.....


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नहीं आती है मुझको
याद तुम्हारी
याद तो आते हैं वो
जिन्हें भुलाया हो कभी...

रह रहे हो तुम तो हर पल
दिलो ज़ेहन में मेरे
उतरते हो लफ़्ज़ों में
नज़्म हो कर
दौड़ते हो रगों में
लहू बन कर
बसते  सीने में
धड़कन की तरह
गुनगुनाते हो गीत कोई
साँसों की लय पर मेरी
तभी तो
नहीं आती है मुझको
याद तुम्हारी...

हाँ !!
याद आते है
कुछ पल घड़ियाँ दिन और रात
बिताए थे जो संग में हमने ,
हो जाने पर फिर से
वैसा ही कुछ
जो बना था निमित्त
उन क्षणों के होने का...

गुज़रती हूँ जब जब
उन जगहों से
जहाँ हुए थे हम साथ
जी लेती हूँ  उस सुकूँ को
जो बहता है लगातार
दरमियाँ हमारे...

देखती हूँ
बेलों के झुरमुट में
पार्क की उस बेंच को
बैठ कर जिस पर
खाते हुए मूंगफली
बिखेरे थे ठहाके
साथ छिलकों के हमने,
हो लेते हैं साथ मेरे
वो बिखरे ठहाके
बन कर मुस्कान
मेरे रौं रौं की...

छू जाना उंगलियों का
चलते चलते
साथ साथ सड़क पर
था आकस्मिक
या प्रयत्न पहुँचाने का
कुछ अनकहा सा
नहीं जान पाई हूँ
आज तक
पर ज़िंदा है मेरे वजूद में
अब तलक
सिहरन उस छुअन की...

जीना तुमको
तुम्हारे ना होने में
देता  नहीं  एहसास
तुमसे बिछड़ने का
कहती हूँ
इसीलिए तो,
नहीं आती है मुझको
याद तुम्हारी ...

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